भारत की इन वीरांगनाओं ने आज़ादी की लड़ाई में दिया अहम योगदान
Bharat ki pramukh mahila krantikari – भारत के इतिहास में कई ऐसी महिलाएं हैं जो पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली हैं| यह क्रांतिकारी महिलाएं साहसी, ताकतवर और हर कला में निपुण थी| तो चलिए आज आपको भारत की उन महान महिला योद्धाओं के बारे में बताते हैं जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई में दिया था अहम योगदान।
Bharat ki pramukh mahila krantikari – भारत की प्रसिद्ध महिला क्रांतिकारी
- रानी लक्ष्मीबाई (मणिकर्णिका) बचपन से तलवार चलाने और घुड़सवारी करने में माहिर थीं|
- झांसी के महाराजा गंगाधर राव से शादी करने के बाद उन्हें रानी लक्ष्मीबाई नाम मिला| मगर 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी थी|
- राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स नीति के तहत अंग्रेज़ों ने झाँसी राज्य का विलय (Fusion) अंग्रेजी साम्राज्य में करने का फैसला कर लिया, तब रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों के खिलाफ लंदन की अदालत में मुकदमा दायर कर दिया|
- मगर बहुत बहस के बाद इसे खारिज कर दिया गया जिसके बाद अंग्रेज़ों ने उनके किले पर हमला किया और उन्हें झाँसी से हमेशा के लिए दूर करना चाहा|
- मगर रानी लक्ष्मीबाई ने पूरे साहस और वीरता के साथ अंग्रेजी हुकूमत से जंग की और अपनी सेना का गठन किया|
- रानी लक्ष्मीबाई ने जी-जान से अंग्रेजी सेना का मुकाबला किया पर 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा में ब्रिटिश सेना से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गयीं|
Bharat ki pramukh mahila krantikari
ऊदा देवी
- ऊदा देवी एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थी जिन्होंने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय सिपाहियों की ओर से युद्ध में भाग लिया था|
- वह अवध के छठे नवाब वाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्य थी| उदा देवी पासी जाति की थी|
- अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाली वह एकमात्र ऐसी महिला थी जिन्हें अंग्रेज लेखकों द्वारा ब्लैक टाइगर कहा जाता था|
- 14 नवम्बर 1857 को ऊदा देवी 36 अंग्रेज़ सैनिकों को एकसाथ मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई| 1857 में उन्होंने लखनऊ के सिकंदर बाग में हुई लड़ाई में अहम योगदान दिया था।
- जब कोलिन कैंपबेल के आदेश के तहत हज़ारों भारतीय सैनिक मारे गए थे, एक शार्प शूटर ने पेड़ के ऊपर छिपकर अंग्रेजों पर गोलीबारी कर रहा था| यह शार्प शूटर कोई और नहीं बल्कि ऊदा देवी थी|
- उनकी प्रतिमा आज भी सिकंदर बाग लखनऊ के बाहर लगी हुई है|
Must read: सादगी, समर्पण और आत्मविश्वास की जीती-जागती मिसाल है सुधा मूर्ति
झलकारी बाई
- झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई के महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थी|
- वह लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थीं इस कारण शत्रु को गुमराह करने के लिए वे रानी के वेश में युद्ध करती थी| कई बार उन्होंने ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए उन्हें युद्ध में पराजित किया।
- उनके पति भी झाँसी सेना में एक सैनिक थे| झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती हैं|
- 22 जुलाई 2001 में भारत सरकार द्वारा झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया गया था|
- उनकी प्रतिमा और एक स्मारक अजमेर में और दूसरा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आगरा में स्थापित की गयी है|
Bharat ki pramukh mahila krantikari
रानी दुर्गावती
- गोंडवाना की शासक रानी दुर्गावती, अपार वीरता और तेज़ बुद्धि के कारण प्रसिद्ध महिला योद्धा थी| दुर्गावती ने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने पुत्र वीरनारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के रूप में स्वयं शासन करना प्रारंभ किया|
- जब मुगल जनरल ख्वाजा अब्दुल मजीद आसफ खान ने अपनी विशाल सेना के साथ उनके राज्य पर आक्रमण किया, तो उन्होंने हिलने से इनकार कर दिया और अपने राज्य के लिए लड़ने के लिए युद्ध के मैदान में पहुंच गयी|
- बुरी तरह घायल होने के बावजूद भी वो बहादुरी से लड़ती रही| अपने प्राण त्यागते हुए भी उन्होंने यह घोषणा की थी कि वह दुश्मन के सामने आत्मसमर्पण करने की बजाय खुद को मार डालेंगी|
- उनकी बहादुरी के सम्मान में, उनकी पुण्यतिथि ‘बालिदान दिवस’ के रूप में मनाई जाती है|
अब्बक्का रानी
- कई सालों तक भारत में अंग्रेज़ों ने हुकूमत की| ऐसे में कई महान हस्तियों ने देश को आज़ादी दिलाने का काम किया जिसमें से एक नाम अब्बक्का रानी का है|
- अब्बक्का रानी जिन्हें अब्बक्का महादेवी के नाम से भी जाना जाता है| यह तुलु नाडू की रानी थी और चौटा राजवंश से ताल्लुक रखती थी|
- सोलहवीं शताब्दी में उन्होंने पुर्तगालियों के साथ आज़ादी के लिए युद्ध किया|
- चौटा राजवंश मातृ सत्ता की पद्धति से चलने वाला राजवंश था, इसलिए अब्बक्का के मामा, तिरुमला राय ने उन्हें उल्लाल की रानी का पद सौंपा|
- पुर्तगालियों ने उल्लाल शहर पर कई बार हमला किया मगर रानी ने उन्हें हमेशा धूल चटाई|
- चार दशकों तक अब्बक्का रानी ने उल्लाल शहर को हर दुश्मन से बचा कर रखा जिसके कारण उन्हें अभया रानी के नाम से जाना गया|
- उल्लाल किला अरब सागर के किनारे मैंगलोर शहर से कुछ ही दूर था। साल 1525 और 1555 में पुर्तगालियों ने एडमिरल डॉम अलवरो दा सिलवेरिया को रानी से युद्ध करने भेजा था जिसमें रानी ने सबको धूल चटा कर खदेड़ भगाया था|
Bharat ki pramukh mahila krantikari
रानी चेनम्मा
- रानी चेनम्मा भारत के कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थीं| उनका जन्म 23 अक्टूबर 1778 को हुआ|
- उनके पिता मैसूर के महाराजा और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने 1824 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ मुहिम छेड़ी थी|
- रानी चेनम्मा उपनिवेशवाद (Colonialism) का विरोध करने वाली पहली महिला स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थी| उनके साहस और वीरता के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में खासकर कर्नाटक में उन्हें विशेष सम्मान हासिल है|
- देसाई परिवार के राजा मलसाराजा से उन्होंने शादी की|
- ब्रिटिश अधिकारियो की मनमानी को देखते हुए रानी चेनम्मा ने बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर को संदेश दिया। मगर किसी ने इस पर सुनवाई नहीं की|
- साल 1824 में उनके पति और बेटे की मृत्यु हो गयी, जिसके बाद ब्रिटिश अधिकारी उनके बहुमूल्य आभूषणों और जेवरात को हथियाना चाहते थे|
- पति और बेटे की मृत्यु के बाद, रानी ने वर्ष 1824 में शिवलिंगप्पा को गोद लिया और उन्हें सिंहासन का उत्तराधिकारी बनाया| इसके बाद अंग्रेजी सेना ने रानी चेनम्मा पर हमला किया|
- 21 फरवरी 1829 को रानी चेनम्मा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुई|
Must read: 5 Strong Female Warriors in the History of India
बेगम हज़रत महल
- बेगम हज़रत महल, जिन्हें अवध की बेगम भी कहा जाता है, नवाब वाजिद अली शाह की दूसरी पत्नी थी|
- वह 1857 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ विद्रोह में भारत की स्वतंत्रता सेनानी थी|
- अपने पति के कलकत्ता से निर्वासित (deport) होने के बाद उन्होंने राज्य का कार्यभार संभाला|
- लखनऊ से अपने शासनकाल को छोड़ने के लिए मजबूर होने के बाद, वह काठमांडू चली गई|
- मगर 1879 में महारानी विक्टोरिया की जयंती के अवसर पर, ब्रिटिश सरकार ने बिरजिस क़दर (बेगम हज़रत महल के बेटे) को माफ़ किया और उन्हें घर लौटने की अनुमति दी|
Bharat ki pramukh mahila krantikari
ओंके ओबव्वा- Female worrier in Indian history
- ओंके ओबव्वा एक बहादुर महिला थी, जिसने हैदर अली की सेना से अकेले मूसल (ओंके) के साथ भारत के कर्नाटक राज्य के चित्रदुर्ग में लड़ाई लड़ी थी|
- कांतिकारी ओंके ओबव्वा के पति चित्रदुर्ग थे जो चट्टानी किले में एक प्रहरी थे| एक दिन धोखे से चित्रदुर्ग को हैदर अली के सैनिकों द्वारा घेर लिया गया था| उस समय सभी सैनिक दोपहर का खाना खाने गए थे और ओबव्वा तालाब से पानी लेने गई थी|
- इस दौरान ओंके ओबव्वा ने देखा कि हैदर अली के सैनिक छेद के माध्यम से किले में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं| तब ओंके ओबव्वा सैनिकों को मारने के लिए मूसल (धान को कुटने के लिये एक लकड़ी का लंबा डंडा) लेकर छेद के पास खड़ी हो गई|
- छेद काफी छोटा था, जिसमें से एक-एक करके ही आया जा सकता था| जैसे ही कोई सैनिक उस छेद से अन्दर आता, ओबव्वा उसके सिर पर ज़ोर से प्रहार करती, साथ ही वह सैनिकों के शव को एक तरफ करती जाती ताकि बाकी सैनिकों को संदेह न हो|
- इस तरह उन्होंने इस युद्ध में अपना अहम योगदान निभाया था| देश आज भी इन वीरांगनाओं के साहस को सलाम करता है। इनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
Must read: जानिए भारत में इतिहास रचने वाली आदर्श महिलाओं के बारे में
Read more stories like: Bharat ki pramukh mahila krantikari, हमारे फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर हमें फ़ॉलो करें और हमारे वीडियो के बेस्ट कलेक्शन को देखने के लिए, YouTube पर हमें फॉलो करें।