Chhath Puja Vrat Katha pdf – यहां पढ़िए छठ पूजा की कथा

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Chhath puja vrat katha pdf in hindi  Chhath Puja Vrat Katha, Chhath Puja Vrat Katha Pdf, Chhath Puja Vrat Katha Download, Chhath Puja Vrat Katha in hindi pdf – छठ पूजा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व दिवाली के बाद पूर्वी उत्तर प्रदेश और विशेषकर बिहार राज्य के लोगों द्वारा मनाया जाता है। छठ पूजा लगभग चार दिनों तक की जाती है जिसमें भगवान सूर्य देव और छठ मैया की आराधना का विशेष महत्व है। इस दिन की शुरुआत सबसे पहले नहाय खाय से होती है जिसके अंतर्गत सबसे पहले गंगा के पवित्र जल से स्नान किया जाता है। उसके बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। कहा जाता है कि जो माताएं या महिलाएं छठ पूजा का व्रत रखती हैं, उनकी संतान को दीर्घायु मिलती है। कुछ लोग छठ पूजा का व्रत संतान प्राप्ति के उद्देश्य से भी रखते हैं। ऐसे में आज हम आपको अपने लेख के माध्यम से यह बताने जा रहे हैं कि आखिर छठ पूजा क्यों की जाती है और छठ पूजा की कथा।chhath puja vrat katha pdf

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कौन हैं छठ मैया?

हिंदू धर्म की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ मैया को भगवान सूर्य देव की बहन कहा जाता है जो मुख्यता मनुष्य की संतानों की रक्षा करती हैं और उनको लंबी आयु का वरदान देती हैं। धार्मिक पुराणों में छठ देवी के छह रूपों का वर्णन मिलता है जिसमें इन्हें मातृ देवी की उपाधि दी गई है। जानकारी के लिए बता दें कि नवरात्रों के दिनों में षष्ठी तिथि को जिन कात्यायनी देवी की आराधना की जाती है उन्हें ही छठ पर्व के दौरान छठी मैया के तौर पर पूजा जाता है।

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छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा – Chhath puja ki kahani

छठ पर्व को मानने के पीछे कई प्रकार की धार्मिक कथाएं प्रचलित हैं जो निम्न प्रकार से हैं।

एक बार एक राजा और रानी थे जिनका नाम क्रमश: प्रियव्रत और मालिनी था। कई सालों से दोनों को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ था जिसके कारण वह दोनों काफी परेशान रहा करते थे। ऐसे में एक बार उन्होंने महर्षि कश्यप के माध्यम से पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन कराया जिसके परिणामस्वरूप रानी मालिनी गर्भवती हो गई। नौ महीने बाद दंपती को मरे हुए पुत्र की प्राप्ति हुई जिसके बाद राजा और रानी ने खुदकुशी का मन बना लिया।

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फिर जब राजा और रानी स्वयं को मारने का प्रयास कर रहे थे तभी एक देवी उनके समक्ष प्रकट हुई उन्होंने कहा कि हे राजन्! मैं अपने भक्तों को संतान के सुख का वरदान देती हूं। मैं संतान प्राप्ति का सौभाग्य प्रदान करने वाली देवी षष्ठी हूं। अगर तुम दोनों मेरी सच्चे भाव और श्रद्धा से पूजा करते हो, तो मैं तुम दोनों को भी संतान के सुख का वरदान दूंगी जिसके बाद तुम्हारा यह मृत पुत्र भी जीवित हो जाएगा। देवी षष्ठी की यह बात सुनकर राजा और रानी ने ठीक वैसा ही किया। कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को उन्होंने षष्ठी देवी के व्रत का विधि विधान से पालन किया जिससे खुश होकर षष्ठी देवी ने राजा और रानी के पुत्र को जीवित करके उन्हें संतान का सुख प्रदान किया। कहते हैं तभी से छठ पूजा का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाने लगा।

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इसके अलावा, कहा जाता है कि महाभारत काल में जब पांडव द्यूत क्रीड़ा में अपना सारा राजपाठ हार गए थे। तब पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भी छठी मैया का व्रत धारण किया था। कहते हैं कि उसी व्रत के चलते पांडवों को अपना राजपाठ पुन: वापिस मिल गया था।

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