Gangaur Vrat 2023: गणगौर व्रत की पूजा विधि, महत्व, कथा और शुभ मुहूर्त

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Gangaur Vrat shubh muhurat puja vidhi – हिन्दू धर्म में सालाना कई तरह के व्रत और उत्सव मनाए जाते हैं। हर व्रत के पीछे कोई न कोई धार्मिक मान्यता होती है। आज हम बात कर रहे हैं ‘गणगौर व्रत’ की। इस साल गणगौर व्रत 8 मार्च 2023 से शुरू होकर 24 मार्च 2023 तक चलेगा। चलिए आपको बताते हैं इसकी पूजा विधि, महत्व और शुभ मुहूर्त।gangaur vrat shubh muhurat puja vidhi

Gangaur Vrat shubh muhurat puja vidhi –    Gangaur Vrat 2023

कब है गणगौर व्रत? Gangaur Vrat kab hai 

गणगौर व्रत इस साल 8 मार्च 2023 से शुरू होकर 24 मार्च 2023 तक है। यह दिन माँ गौरा को समर्पित है। इस दिन स्त्रियां गुप्त तरीके से व्रत करती हैं और माता से अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र का वर मांगती हैं। दिलचस्प बात यह है कि धार्मिक मान्यता के अनुसार स्त्रियों को ये व्रत पति को बिना बताये गुप्त तरीके से रखना होता है।

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गणगौर पूजा का महत्वGangaur Vrat mahatva in hindi 

हिन्दू धर्म में गणगौर पूजा का एक विशेष महत्व है। स्त्रियां इस व्रत को सदा सुहागन रहने के लिए करती हैं। गणगौर व्रत स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य प्राप्ति का पर्व है। इस दिन विवाहित स्त्रियां पति की मंगल कामना और उनके अखंड सौभाग्य का वर मांगती हैं। इस व्रत को जो भी स्त्री सच्चे मन से करती है उसे माँ गौरा का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनके पतियों की उम्र लम्बी होती है। इस तरह ये व्रत करने पर स्त्रियां सदा सौभाग्यवती रहती हैं। अविवाहित लड़कियां माँ गौरा से मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को करती हैं। इस दिन को सौभाग्य तीज के नाम से भी जाना जाता है।

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पूजा की सम्पूर्ण विधि 

  • गणगौर तृतीया के दिन सबसे पहले किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद लाल रंग के कपड़े पहनें।
  • अब एक चौकी को गंगाजल से साफ करें और उसपर लाल रंग का आसन बिछाएं।
  • चौकी पर जल से भरा हुआ कलश रखें।
  • उसके बाद कलश में गंगाजल, सुपारी, हल्दी, चावल और एक रूपये का सिक्का डालें। उसके मुख पर कलावा बांधे।
  • अब कलश में आम के पत्ते लगाकर उसके ऊपर मौली बांधें।
  • अब कलश के ऊपर नारियल रख दें।
  • चौकी पर माँ गौरा और भगवान शिव की तस्वीर या प्रतिमा स्थापित करें।
  • ये सब करने के बाद घी का दीपक प्रज्वलित करें।
  • हाथों में फूल, पूजा की सुपारी लें और व्रत का संकल्प करने के पश्चात उसे अर्पित कर दें।
  • अब मिट्टी या फिर बेसन से 6 गौर बनाएं।
  • गौर बनाने के बाद इनपर हल्दी एवं कुमकुम लगाएं।
  • माता गौरी को अक्षत, सिंदूर और पुष्प चढ़ाएं।
  • अब थोड़ा सा सिंदूर अपने माथे पर लगाएं।
  • इसके बाद माता गौरा और भगवान शिव को फलों आदि का भोग लगाएं।
  • अब आप एक कागज लें और उसके ऊपर 16 मेहंदी, 16 कुमकुम और 16 काजल की बिंदी लगाएं और माता को अर्पित कर दें।
  • अंत में मीठे गुने या चूरमे का भोग लगाकर गणगौर माता की कहानी सुनें। माँ से आशीर्वाद लें।

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शुभ मुहूर्त  

  • गणगौर पूजा शुक्रवार, मार्च 24, 2023
  • तृतीया तिथि प्रारम्भ – मार्च 23, 2023 को 06:20 पी एम बजे
  • तृतीया तिथि समाप्त – मार्च 24, 2023 को 04:59 पी एम बजे

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गणगौर व्रत की सम्पूर्ण कथा 

हिन्दू मान्यताओं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इस व्रत की कथा इस प्रकार है – एक बार भगवान शिव, माता पार्वती और नारद मुनि भ्रमण पर निकले। सभी एक गांव में पहुंचें। जब इस बात की जानकारी गांव वालों को लगी तो गांव की संपन्न और समृद्ध स्त्रियां तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाने की तैयारी में जुट गईं जिससे प्रभु अच्छा भोजन ग्रहण कर सकें। वहीं गरीब परिवारों की महिलाएं पहले से ही उनके पास जो भी साधन थे उनको अर्पित करने के लिए पहुंच गई। उनके भक्ति भाव से खुश होकर माता पार्वती ने उन सभी महिलाओं पर सुहाग रस छिड़क दिया। फिर थोड़ी देर में संपन्न परिवार की महिलाएं तरह-तरह के मिष्ठान और पकवान लेकर वहां पहुंची लेकिन माता के पास उनको देने के लिए कुछ नहीं बचा। इस पर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि अब आपके पास इन्हें देने के लिए कुछ नहीं बचा क्योंकि आपने सारा आशीर्वाद गरीब महिलाओं को दे दिया। ऐसे में अब आप क्या करेंगी। तब माता पार्वती ने अपने खून के छींटों से उन पर अपने आशीर्वाद बांटे। इसी दिन चैत्र मास की शुक्ल तृतीया का दिन था इसके बाद सभी महिलाएं घरों को लौट गई। इसके बाद माता पार्वती ने नदी के तट पर स्नान कर बालू से महादेव की मूर्ति बनाकर उनका पूजन किया। उसके बाद बालू के पकवान बनाकर ही भगवान शिव को भोग लगाया और बालू के दो कणों को प्रसाद रूप में ग्रहण कर भगवान शिव के पास वापस लौट आईं।

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इन बातों को भगवान शिव जानते थे फिर भी उन्होंने माता पार्वती से पूछा कि स्नान करने में बहुत देर लगा दी? माता ने कहा – मायके वाले मिल गये थे जिसके कारण इतनी देर हो गई। फिर भगवान शिव ने माता पार्वती से पूछा कि आपके पास तो कुछ था भी नहीं स्नान के बाद प्रसाद में क्या लिया? माता गौरा ने कहा कि भाई और भावज ने दूध-भात बना रखा था उसी को ग्रहण कर सीधे आपके पास आई हूं। फिर भगवान शिव ने भाई भावज के यहां चलने को कही ताकि उनके यहां बने दूध-भात का स्वाद चख सकें। तब माता ने अपने को संकट में फंसे देख मन ही मन भगवान शिव को याद कर अपनी लाज रखने की कही। इसके बाद नारद मुनि को साथ लेते हुए तीनों लोग नदी तट की तरफ चल दिये। वहां पहुंच कर देखा कि एक महल बना हुआ है। जहां पर खूब आवभगत हुई। इसके बाद जब वहां से तीनों लोग चलने लगे तो कुछ दूर चलकर भगवान शिव माता से बोले कि मैं अपनी माला आपके मायके में भूल आया हूं।

माता पार्वती के कहने पर नारद जी वहां से माला लेने के लिए उस जगह दोबारा गए तो हैरान रह गए क्योंकि उस जगह चारों तरफ सन्नाटे के आलावा कुछ भी नहीं था। तभी एक पेड़ पर उन्हें भगवान शिव की रूद्राक्ष की माला दिखाई दी उसे लेकर वे लौट आए और भगवान शिव को सारी बातें बताईं। तब भगवान शिव ने कहा – यह सारी माया देवी पार्वती की थी। वे अपने पूजन को गुप्त रखना चाहती थीं इसलिए उन्होंने झूठ बोला और अपने सत के बल पर यह माया रची। तब नारद जी माता से बोले – हे मां ! आप सौभाग्यवती और आदिशक्ति हैं। ऐसे में गुप्त रूप से की गई पूजा ही अधिक शक्तिशाली एवं सार्थक होती है। तभी से जो स्त्रियां इसी तरह गुप्त रूप से पूजन कर मंगल कामना करेंगी महादेव की कृपा से उनकी मनोकामनाएं जरूर पूरी होंगी इसलिए हर साल स्त्रियां इस व्रत को करती हैं और अपने पति से इस व्रत को गुप्त रखती हैं।

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