Ganpati bappa morya me kya hai morya – मोरिया क्यों जुड़ा है गणपति बप्पा मोरिया में

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Ganpati bappa morya me kya hai morya – गणपति की पूजा करते वक्त भक्त गणपति बप्पा मोरयाके जयकारे लगाते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि कहां से हुई इस जयकारे की शुरुआत और क्या है इसके पीछे की कहानी| तो चलिए हम आपको बताते हैं इसके इतिहास की कहानी|

Ganpati bappa morya me kya hai morya

Ganpati bappa morya me kya hai morya

  • ये कहानी है एक भक्‍त और भगवान की, जहां भक्‍त की भक्ति और आस्था के कारण भक्त के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया भगवान गणेश का नाम| गणपति के इस जयकारे की जड़ें चिंचवाड़ गांव से जुड़ी हैं| चौदहवीं सदी में एक संत हुए, जिनका नाम मोरया गोसावी था| कहते हैं भगवान गणेश के आशीर्वाद से ही मोरया गोसावी का जन्म हुआ था और मोरया गोसावी भी अपने माता-पिता की तरह भगवान गणेश परम भक्त थे|

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  • हर साल गणेश चतुर्थी के शुभ अवसर पर मोरया चिंचवाड़ से मोरगांव गणेश जी की पूजा करने के लिए पैदल जाया करते थे लेकिन कुछ सालों बाद बढ़ती उम्र की वजह से उन्हें मोरगांव जाने में दिक्कत होने लगी और फिर एक दिन गणेश जी ने इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मोरया को सपने में दर्शन दिए और कहा कि तुम्हें मेरी मूर्ति एक नदी में मिलेगी जिसे तुम उठा लेना|

गणेश चतुर्थीGanpati bappa morya me kya hai morya

  • ये सुनकर मोरया गोसावी बहुत प्रसन्न हुए और सुबह उठते ही नदी में स्नान के लिए चले गए और इसी दौरान उन्हें गणेश जी की मूर्ति नदी में मिली| इसके बाद मोरया ने उस मूर्ति को स्थापित कर वहां मंदिर बनवाया|

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  • भगवान गणेश के सपने में आने वाली खबर जैसे ही लोगों को पता चली तो लोग दूर-दूर से मोरया गोसावी के दर्शन के लिए आने लगे। मोरया गोसावी के भक्तों को मंगलमूर्ति के नाम से बुलाया जाता था। यही कारण है कि गणपति बप्पा मोरया और मंगलमूर्ति मोरया का ये जयकारा लगाया जाता है।

भगवान गणेश

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  • मोरया काफी समय तक गणपति की भक्ति में लीन रहे और फिर एक दिन इन्होंने वहां पर ज़िंदा समाधि ले ली| तभी से गणपति के साथ मोरया का नाम जुड़ गया और सब लोग गणपति बप्पा मोरया का जयकारा लगाने लगे|

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  • आज भी मोरया गोसावी मंदिर और चिंचवाड़ गांव के मंदिर में भक्तों की बहुत भीड़ लगती है| देश- विदेश से श्रद्धालु वहां गणपति के दर्शन करने के लिए आते हैं|   
  • मोरया गोसावी मंदिर में साल में दो बार विशेष उत्सव का आयोजन किया जाता है| भाद्रपद महीने व माघ महीने में वहां से पालकी निकलती है|

  • उसी तरह दिसंबर महीने में चिंचवाड़ गांव में भी उत्सव मनाया जाता है| बड़ी संख्या में देशभर से श्रद्धालु यहां गणपति के दर्शन करने आते हैं और दिनभर चलने वाले धार्मिक कार्यक्रमों का हिस्सा बनते हैं|

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