550वें प्रकाश पर्व के अवसर पर जानिए गुरू नानक देव जी के जीवन के बारे में
Guru nanak prakash parv- सिख धर्म के पहले गुरू नानक देव जी हैं, इन्होंने ही सिख धर्म की स्थापना की थी। हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर इनके जन्मदिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस साल 550वां गुरू पर्व मनाया जा रहा है। नानक देव जी ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए अपने पारिवारिक जीवन और सुख का ध्यान न करते हुए दूर-दूर तक यात्राएं की। तो आइए जानिए गुरू नानक देव जी से जुड़ी बातों के बारे में।
गुरु नानक देव जी का शुरुआती जीवन
- गुरू नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को राय-भोई-दी-तलवंडी में हुआ, जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। ननकाना साहिब, पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में स्थित एक शहर है।
- कुछ अन्य ग्रंथों में कहा गया है कि श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 20 अक्टूबर, 1469 को हुआ था।
- गुरु नानक देव के पिता जी का नाम मेहता कल्याण दास था, जिन्हें मेहता कालू के नाम से भी जाना जाता था। वे राय बुलर के एजेंट और मुख्य लेखाकार थे।
- उनकी माता का नाम माता त्रिपता था, जो सरल व धार्मिक स्वभाव की महिला थीं। नानक देव जी की एक बड़ी बहन थीं जिनका नाम था नानकी।
- गुरू नानक देव ने मात्र 7 साल की उम्र में हिंदी और संस्कृत सीखी। 13 साल की उम्र में उन्होंने फ़ारसी और संस्कृत सीखी और 16 साल की उम्र में ही वे अपने क्षेत्र के सबसे पढ़े लिखे युवा बन गए।
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नानम देव जी का विवाह और उनका सफर
- नानक देव जी का विवाह माता सुलक्खनी जी से हुआ, जिन्होंने दो पुत्रों को जन्म दिया, श्री चंद और लखमी दास।
- नवंबर 1504 में, श्री गुरु नानक देव जी की बड़ी बहन नानकी जी उन्हें सुल्तानपुर लोदी ले गईं, जहाँ उनके पति जय राम जी ने एक स्थानीय नवाब दौलत खान लोधी के मोदीखाना में स्टोर कीपर की नौकरी दिलवाई।
- मात्र 38 साल की उम्र में नानक देव जी ने भगवान की पुकार सुन सुल्तानपुर लोधी के पास एक नदी में स्नान कर खुद को मानवता की सेवा में समर्पित कर दिया।
- इसके बाद उनका पहला वाक्य था,” यहां कोई हिन्दू नहीं और ना ही कोई मुसलमान”। नानक देव जी ने अपने अनूठे और दिव्य सिद्धांत (सिख धर्म) का प्रचार करने के लिए कई लम्बी यात्राएं की।
- पंजाब के सभी जगहों की यात्रा करने के बाद उन्होंने चार लम्बी यात्राओं पर जाने का फैसला किया। इस यात्रा को नानक देव जी की ‘चार उदासी’ कहा जाता है।
- अपनी इन चार यात्राओं के दौरान वे कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, जोशी मठ, रथ साहिब, गोरख मट्टा (नानक मत्ता), प्रयाग, वाराणसी, गया, पटना, धुबरी और असम, ढाका, पुरी, कटक, रामेश्वरम, सीलोन, बिदर, बारोक में गए।
- इसके अलावा सोमनाथ, द्वारका, जनागढ़, उज्जैन, अजमेर, मथुरा, पाकपट्टन, तलवंडी, लाहौर, सुल्तानपुर, बिलासपुर, रावलसर, ज्वालाजी, स्पीति वैली, तिब्बत, लद्दाख, कारगिल, अमरनाथ, श्रीनगर और बारामूला में भी गए।
- यही नहीं उन्होंने मुस्लिम देशों में भी यात्राएं की। इस दौरान वे मक्का, मदीना, मुल्तान से होते हुए बगदाद, पेशावर सखार, सोन मियां, हिंगलाज आदि जगहों पर गए।
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बाबर का हमला और नानक जी की गिफ्तारी (Guru nanak prakash parv)
- 1520 में बाबर ने भारत पर हमला किया। इस हमले में हजारों निर्दोष लोगों को मार दिया गया। यही नहीं महिलाओं और बच्चों को भी बंदी बना लिया गया और उनकी सारी संपत्ति को लूट लिया गया।
- गुरु नानक साहिब ने इस हमले की कड़ी शब्दों में निंदा की, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार और फिर रिहा कर दिया गया। इस पर बाबर को अपनी गलती का एहसास हुआ और सभी कैदियों को भी रिहा कर दिया गया।
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गुरूनानक जी अपने अंतिम दिनों में
- साल 1522 में गुरु नानक देव जी करतारपुर शहर (अब पाकिस्तान ) में बस गए थे और अपना बाकी जीवन (1522-1539) वहीं बिताया।
- यहां उन्होंने दैनिक कीर्तन और लंगर (मुफ्त रसोई) की संस्था शुरू की। जब नानक देव जी का अंत नजदीक आ रहा था तो उन्होंने अपने दो बेटों और कुछ अनुयायियों की परीक्षा लेना शुरू किया।
- इसके बाद उन्होंने भाई लेहना जी (गुरु अंगद देव जी) को दूसरे नानक बनाया और इसके कुछ दिनों बाद 22 सितंबर 1539 को सचखंड में चले गए।
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गुरु नानक जी के अनमोल वचन
- न कोई हिंदू है न कोई मुसलमान है – सभी मनुष्य हैं, सभी समान हैं।
- मोह को जलाकर और उसे घिसकर स्याही बनाओ, बुद्धि को श्रेष्ठ कागज़ बनाओ। प्रेम को कलम बनाओ और चित्त को लेखक।
- जो व्यक्ति परिश्रम करके कमाता है, अपनी कमाई में से कुछ दान करता है, वह वास्तविक मार्ग ढूंढ लेता है।
- जो असत्य बोलता है, वह गंदगी खाता है, जो स्वयं भ्रम में पड़ा हुआ है, वह दूसरे को सत्य बोलने का उपदेश कैसे दे सकता है।
- यदि मनुष्य को सच्चा गुरु मिल गया तो उसका मन भटकना छोड़ देता है। उसके अंदर की सरिता बह निकलती है।
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