एक ऐसे सैनिक की कहानी, जो शहीद होने के बाद भी रिटायरमेंट तक करते रहे देश सेवा
Indian army soldier baba harbhajan singh – भारतीय सैनिक देश के लिए अपनी जान तक न्यौछावर कर देते हैं। शहीद होने के बाद इनका अपनी मातृभूमि के प्रति लगाव कम नहीं होता। ये आखिरी सांस तक अपनी अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते हैं और हंसते- हंसते शहीद हो जाते हैं। अंतिम सांस तक देश के लिए लड़ते हुए बहुत से भारतीय सैनिकों की गाथा तो आपने सुनी होगी, लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्सियत की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जो अपने देश के लिए शहीद तो हुआ, लेकिन उसका प्रेम, लगाव अपनी मातृभूमि के लिए शहीद होने के बाद भी कम नहीं हुआ और वो शहादत के बाद भी सरहद पर अपनी ड्यूटी निभाता रहा। ये बात सुनने में थोड़ी अजीब तो है, लेकिन लोगों की मानें तो इस बात में कई हद तक सच्चाई है। तो चलिए आपको सुनाते हैं भारतीय सैनिक बाबा हरभजन की पूरी कहानी।
भारतीय सैनिक बाबा हरभजन की प्रारंभिक शिक्षा – Indian army soldier baba harbhajan singh
- बाबा हरभजन सिंह का जन्म एक सिख परिवार में 30 अगस्त 1946 को सदराना (अब पाकिस्तान में) गाँव में हुआ। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के एक स्कूल में पूरी की और मार्च 1965 में पंजाब के डीएवी हाई स्कूल से मैट्रिक पास की।
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- पंजाब रेजिमेंट में हुए शामिल
- ये 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए। 1968 में वो 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे।
- 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम के नाथू ला के पास उनका पांव फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई।
- पानी का तेज़ बहाव उन्हें बहाकर 2 किलोमीटर दूर ले गया, जिससे भारतीय सेना को उनका शव नहीं मिला था।
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सपने में आकर दी अपने शव की जानकारी
- ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने साथी सैनिक के सपने में आकर अपने शव के बारे में जानकारी दी थी।
- इसके बाद उस जगह पर जाकर खोजबीन की गई और तीन दिन बाद भारतीय सेना को बाबा हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर उसी जगह मिल गया।
- ये भी कहा जाता है कि उन्होंने सपने में आकर ये इच्छा भी ज़ाहिर की थी कि उनकी समाधि बनाई जाए।
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शहीद होने के बाद भी उन्हें सेना में रखा गया
- लोगों का कहना था कि शहीद होने के बाद भी बाबा हरभजन सिंह नाथु ला के आस-पास चीन सेना की गतिविधियों पर नज़र रखते हैं और ड्यूटी पर तैनात रहते हैं।
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- ये भी कहा जाता है कि वो चीन सेना की गतिविधियों की जानकारी भारतीय सैनिको को सपनों में आकर देते थे, जो हमेशा सच साबित हुई।
- इन्हीं सब बातों के चलते शहीद होने के बाद भी उनको भारतीय सेना की सेवा में रखा गया। चीनी सिपाहियों ने भी, उनको घोड़े पर सवार होकर रात में गश्त लगाने की पुष्टि की है।
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- भारत और चीन आज भी बाबा हरभजन के होने पर यकीन करते हैं और इसलिए दोनों देशों की हर फ्लैग मीटिंग पर एक कुर्सी बाबा हरभजन के नाम की भी रखी जाती है।
- इन्हें हर महीने सैलरी भी दी जाती है। सेना के पेरोल में आज भी बाबा का नाम लिखा हुआ है। सेना के नियमों के अनुसार उनका प्रमोशन भी किया गया, जिसके चलते बाबा सिपाही से कैप्टन के पद पर कार्यरत हुए।
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दो महीने की छुट्टी भी दी जाती थी
- हर साल उन्हें दो महीने की छुट्टी दी जाती थीं और कुछ स्थानीय लोग और सैनिक एक जुलूस के साथ उनकी वर्दी, टोपी, जूते और साल भर का वेतन दो सैनिकों के साथ, सैनिक गाड़ी में नाथुला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन लाते थे।
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- वहां से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर (पंजाब) लाया जाता था। यहां से सेना की गाड़ी उन्हें उनके गाँव तक छोड़ने जाती। वहाँ उनका सारा सामान उनकी मां को सौंपा जाता।
- फिर उसी ट्रेन से उन्हें उसी आस्था और सम्मान के साथ उनके समाधि स्थल वापस लाया जाता। कुछ सालों पहले ही उन्हें उनके पद से रिटायर किया गया और उन्हें अब केवल पेंशन दी जाती है।
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छांगू लेक और नाथुला बॉर्डर के बीच समाधि
- ये भी कहा जाता है कि बाबा ने सपने में आकर ये इच्छा भी ज़ाहिर की थी कि उनकी समाधि बनाई जाए इसलिए वहां उनकी समाधि भी बनाई गई।
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- इस समाधि को उस जगह पर 9 किलोमीटर नीचे बनवाया गया है और इसे बाबा हरभजन मंदिर के नाम से जाना जाता है।
- समाधि पर प्रतिदिन प्रेस की हुई उनकी ड्रेस, जूते और बाकी सामान रखा जाता था। भारतीय सेना के जवान बाबा के मंदिर की चौकीदारी करते और उनका बिस्तर भी लगाते थे।
- वहां तैनात सिपाहियों का कहना है कि साफ किए हुए जूतों पर रोज़ाना कीचड़ लगी होती थी और उनके बिस्तर पर सिलवटें देखी जाती थी।
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- हर साल हज़ारों लोग यहां बाबा के दर्शन करने आते थे। लोगों में इस जगह को लेकर बहुत आस्था थी।
- उनकी समाधि के बारे में मान्यता थी कि यहाँ पानी की बोतल कुछ दिन रखने पर उसमें चमत्कारिक गुण आ जाते थे और इसका 21 दिन सेवन करने से श्रद्धालु अपने रोगों से छुटकारा पा जाते।
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- बाबा की आत्मा से जुड़ी बातें भारत ही नहीं चीन की सेना भी बताती है। बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है। लेकिन कुछ साल पहले इस आस्था को अंधविश्वास कहा जाने लगा, तब से यह यात्रा बंद कर दी गई।
- बाबा हरभजन सिंह की शहादत को आज पूरा देश नमन करता है और उनके इस देशप्रेम के जज़्बे को पूरा देश सलाम करता है।
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ये कहानी कुछ सैनिकों और आम लोगों द्वारा बताई गई है। इस कहानी में कितनी सच्चाई और कितना अंधविश्वास है ये तो हम नहीं बता सकते।
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