गणेश चतुर्थी को क्यों कहा गया कलंक चतुर्थी? जानें स्यमन्तक मणि की पौराणिक कथा
Kalank Chaturthi ki katha – Kalank Chaturthi katha in hindi – Kalank Chaturthi ki kahani – गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं क्यों कहा गया इसे कलंक चतुर्थी और क्या है स्यमन्तक मणि की पौराणिक कथा। साथ ही बताएंगे इस कलंक को दूर करने के उपाय भी।
गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी क्यों कहते हैं?– Kalank Chaturthi ki katha – Kalank Chaturthi – ganesh chaturthi 2022 date
- गणेश चतुर्थी को कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है। माना जाता है कि गणेश चतुर्थी की रात को चंद्रमा देखने की मनाही होती है। अगर कोई व्यक्ति इस रात चांद के दर्शन कर लेता है तो उस पर कलंक लगता है।
- कथाओं के अनुसार इस दिन गणेश भगवान ने चांद को श्राप दिया था कि जो भी इस दिन चांद को देखेगा उसे कलंक लगेगा।
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स्यमंतक मणि की पौराणिक कथा- Syamantaka Mani katha – syamantaka mani story in hindi – syamantaka mani katha
- स्यमंतक मणि एक आध्यात्मिक मणि है। इसमें सूक्ष्म शक्ति होती थी जो आध्यात्मिक और सांसारिक प्रगति में सहायता करती थी। इसकी कथा द्वापर युग से बतायी जाती है।
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एक समय जरासंध के भय से भगवान कृष्ण समुद्र के पास जाकर रहने लगे। वर्तमान में इसे द्वारकापुरी के नाम से जाना जाता है। द्वारकापुरी में निवास करने वाले सत्राजित यादव ने सूर्य की आराधना की और सूर्य भगवान ने उन्हें नित्य आठ भार सोना देने वाली स्यमन्तक नामक मणि भेंट कर दी। यह जानकर भगवन श्रीकृष्ण ने उससे मणि प्राप्त करने की कोशिश की, मगर सत्राजित ने वह मणि भगवान कृष्ण को नहीं दी, बल्कि अपने भाई प्रसेनजित को दे दी। एक दिन प्रसेनजित शिकार करने गया। वहां एक शेर ने उसे मार डाला और मणि छीन ली, मगर वह शेर भी मारा गया। रीछों का राजा जामवन्त उस शेर को मारकर मणि लेकर चला गया। कई दिनों तक भाई के शिकार से न लौटने पर सत्राजित ने सोचा कि ज़रूर मणि पाने के लिए कृष्ण ने उसका वध कर दिया होगा। बिना कुछ जाने हुए सत्राजित ने ऐलान कर दिया कि प्रसेनजित को मारकर श्री कृष्ण ने स्यमन्तक मणि छीन ली है। इस बात से दुखी होकर खुद श्री कृष्ण ने कई दिनों तक अपने साथियों के साथ मणि की खोज की। तब उन्हें शेर को रीछ द्वारा मारने के चिह्न मिलें। निशान का पीछा करते हुए वे जामवन्त की गुफा में पहुंचे और देखा कि जामवन्त की पुत्री उस मणि से खेल रही है। इस दौरान श्रीकृष्ण और जामवन्त के बीच युद्ध छिड़ गया। गुफा के बाहर श्रीकृष्ण के साथियों ने उनकी सात दिनों तक प्रतीक्षा की। मगर उनके दोस्तों को लगा कि श्री कृष्ण का वध हो गया है यह सोचकर वो वापस द्वारकापुरी चले गए| इन दोनों के बीच ये युद्ध 21 दिनों तक चला लेकिन जामवन्त श्रीकृष्ण को हरा नहीं पाया। तब उसने सोचा कि कहीं यह वो अवतार तो नहीं जिसके लिए मुझे रामचंद्रजी का वरदान मिला। यह सोच कर उसने अपनी बेटी का विवाह श्रीकृष्ण से किया और मणि दहेज़ में दे दी। श्रीकृष्ण जब मणि लेकर वापस आए तो सत्राजित अपने किए पर दुखी हुआ और लज्जा से मुक्त होने के लिए उसने भी अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।
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कुछ समय के बाद श्रीकृष्ण इंद्रप्रस्थ चले गए। मणि कब्ज़े में करने के लिए शतधन्वा यादव ने सत्राजित की हत्या कर दी। सत्राजित की मौत की खबर सुन कर श्रीकृष्ण द्वारका पहुंचे। तब वह शतधन्वा को मारकर मणि वापस लाने के लिए तैयार हो गए। इसमें उनके भाई बलराम ने भी उनकी मद्द की। यह जानकर शतधन्वा ने मणि अक्रूर को दे दी और भाग निकला। श्रीकृष्ण ने उसका पीछा करके उसे मार तो डाला, पर मणि उन्हें नहीं मिली। तब कृष्णा जी ने बलराम को बताया कि मणि उनके पास नहीं है। इस बात का बलराम जी को यकीन नहीं हुआ। इसके बाद जब कृष्ण भगवान द्वारका लौटे तो सब लोगों ने कृष्ण जी का अपमान किया और यह खबर फैलाई गई कि स्यमन्तक मणि के लालच में श्रीकृष्ण ने अपने भाई का भी त्याग कर दिया। भगवान कृष्ण अपने अपमान से शोक में डूबे थे कि वहां नारदजी आए। उन्होंने कृष्ण को बताया आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन किए थे, जिसके कारण आपको अपमानित होना पड़ रहा है। तब श्रीकृष्ण ने पूछा कि चौथ के चंद्रमा को देखकर कलंक क्यों लगता है। नारदजी ने जवाब दिया कि एक बार ब्रह्माजी ने चतुर्थी के दिन गणेशजी का व्रत किया था। गणेशजी ने प्रकट होकर वर मांगने को कहा तो उन्होंने मांगा कि मुझे सृष्टि की रचना करने का मोह न हो। गणेशजी ज्यों ही ‘तथास्तु‘ कहकर चलने लगे, उनके विचित्र व्यक्तित्व को देखकर चंद्रमा ने उपहास किया। इस पर गणेशजी ने गुस्सा होकर चंद्रमा को श्राप दिया कि आज से कोई तुम्हारा मुख नहीं देखना चाहेगा।
श्राप देकर गणेशजी अपने लोक चले गए और चंद्रमा मानसरोवर की कुमुदिनियों में छिप गए। उस समय चंद्रमा के बिना सबको कष्ट हुआ। उनके कष्ट को देखकर ब्रह्माजी की आज्ञा से सारे देवताओं के व्रत से प्रसन्न होकर गणेशजी ने वरदान दिया कि अब चंद्रमा श्राप से मुक्त तो हो जाएगा, पर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा, उसे चोरी आदि का झूठा इलज़ाम झेलना पड़ेगा, लेकिन जो भी व्यक्ति प्रत्येक द्वितीया को दर्शन करता रहेगा, वह इससे बच जायेगा। तब श्रीकृष्ण ने कलंक से मुक्त होने के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत किया।
Kalank chaturthi ki katha
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कलंक से बचने के उपाय और मंत्र – Chandra Darshan Dosh Nivaran On Ganesh Chaturthi
- शास्त्रों के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे एक साल का कलंक लगता है। भगवान कृष्ण को भी चंद्र दर्शन के मिथ्या कलंक लगने के प्रमाण शास्त्रों में पाए जाते हैं।
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कलंक निवारण उपाय और मंत्र – ganesh chaturthi par chandra darshan kalank nivaran ke upay
भाद्रशुक्लचतुथ्र्यायो ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपिवा।
अभिशापीभवेच्चन्द्रदर्शनाद्भृशदु:खभाग्॥
अर्थ : जो जानबूझ कर अथवा अंजाने में ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा के दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। उसे बहुत दुख उठाना पड़ेगा।
श्रीमद्भागवत के अनुसार – श्रीमद्भागवत के अनुसार बताया गया है कि अगर भूल से आपको इस दिन चंद्र दर्शन हो जाये तो स्यमंतक मणि की चोरी की कथा सुननी चाहिए। इससे चंद्रमा के दर्शन से होने वाले मिथ्या कलंक का ज़्यादा खतरा नहीं होता।
चंद्र दर्शन दोष निवारण हेतु मंत्र
अगर अनिच्छा से चंद्रमा के दर्शन हो जाये तो उस व्यक्ति को नीचे दिए गए मंत्र से जल को शुद्ध करना होगा उसके बाद उस शुद्ध जल को पीना होगा। इससे व्यक्ति पर लगा कलंक ठीक हो जाता है।
सिंहः प्रसेनमवधीत्, सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः ॥
अर्थ : इस मणि के लिए सिंह ने प्रसेन को मारा और जाम्बवान ने उस सिंह का संहार किया। अतः तुम रो मत। अब इस स्यमंतक मणि पर तुम्हारा ही अधिकार है।
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