जानिए क्या है कांवड़ यात्रा और इसके शुरू होने की पौराणिक कहानी
Kanwar Yatra- हर साल श्रावण मास में शिव भक्त कांवड़ लेकर गंगाजल लेने जाते हैं फिर उस जल से भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। जलाभिषेक से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु सुख-समृद्धि की कामना लिए इस पावन यात्रा के लिए निकलते हैं। कांवड़ यात्रा हिंदू धर्म में काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिसके चलते हर साल लाखों की संख्या में कांवड़िए इस यात्रा में भाग लेते हैं। तो चलिए आपको बताते हैं कांवड़ यात्रा और इसके इतिहास के बारे में।
क्या है कांवड़ यात्रा?
- हर साल श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवडिये सुदूर स्थानों से आकर गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर पदयात्रा करके अपने घर वापस लौटते हैं। इस यात्रा को कांवड़ यात्रा बोला जाता है।
- श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से अपने निवास के आसपास शिव मंदिरों में शिव का अभिषेक किया जाता है।
- भोले नाथ कांवड़ से गंगाजल चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को मनोवांछित फल देते हैं।
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क्या है कांवड़ यात्रा की पौराणिक कहानी?
- ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान समुद्र से जो विष निकला था, उसे भगवान शिव ने दुनिया को बचाने के लिए पी लिया था, जिसके बाद से भगवान शिव का शरीर नीला पड़ गया था और इसी वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाने लगा था।
- भगवान शिव के विष का सेवन करते ही दुनिया तो बच गई, लेकिन भगवान शिव का शरीर जलने लगा।
- ऐसे में भोलेनाथ के शरीर को जलता देख कर देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया और इसी मान्यता के अंतर्गत कांवड़ यात्रा का महत्व माना गया है। इसके बाद से ही यह परंपरा शुरू हो गई।
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कांवड़ यात्रा की दूसरी पौराणिक कहानी
- भगवान परशुराम भगवान शिव के परम भक्त थे। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान परशुराम सबसे पहले कांवड़ लेकर बागपत जिले के पास ‘पुरा महादेव’ गए थे।
- उन्होंने गढ़मुक्तेश्वर से गंगा का जल लेकर भोलेनाथ का जलाभिषेक किया था। उस समय श्रावण मास चल रहा था। तब से इस परंपरा को निभाते हुए भक्त श्रावण मास में कांवड़ यात्रा निकालने लगे।
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