Kartarpur gurudwara facts hindi- जानें, सिख समुदाय के लिए करतारपुर गुरुद्वारा क्यों है इतना खास
Kartarpur gurudwara facts hindi – गुरु नानक देवजी की 551वीं जयंती के अवसर पर सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कॉरिडोर को खोल दिया गया था। कॉरिडोर के खुलने से भारतीय सिख बिना वीजा के गुरुद्वारे में मत्था टेक कर आए थे। यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है और रावी नदी के करीब स्थित है। तो चलिए आपको बताते हैं इस गुरुद्वारे के फैक्ट्स।
Kartarpur gurudwara facts hindi- करतारपुर साहिब गुरुद्वारा फैक्ट्स
- करतारपुर साहिब गुरुद्वारा जिसे गुरुद्वारा दरबार साहिब के नाम से जाना जाता है। यह सिखों का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है।
- कहते हैं गरुनानक देव जी ने ही करतारपुर को बसाया था। गुरुद्वारा दरबार साहिब के स्थान पर गुरु नानक जी ने 18 सालों तक अपना जीवन व्यतीत किया।
- ऐसा माना जाता है कि 22 सितंबर 1539 को गुरु नानक देव जी ने यहां अंतिम सांस ली।
- गुरुद्वारा अपने स्थान के कारण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पाकिस्तान और भारत की सीमा के पास स्थित है। यह पंजाब, पाकिस्तान में नारोवाल जिले की शकरगढ़ तहसील में स्थित है।
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- 1,35,600 रुपए की लागत से इस गुरुद्वारे का निर्माण कराया गया। इस रकम को पटियाल के महाराज सरदार भूपिंदर सिंह की ओर से दान में दिया गया।
- इसके बाद साल 1995 में पाकिस्तान की सरकार ने इसकी मरम्मत कराई और साल 2004 में इसका कार्य पूरा हुआ।
- यह गुरुद्वारा भारत-पाकिस्तान सीमा से सिर्फ तीन किलोमीटर दूर है। श्राइन भारत की तरफ से ये साफ नज़र आती है। भारत के लोग बड़ी संख्या में वहां इकट्ठा होते हैं और दूरबीन से दर्शन करते हैं।
- पाकिस्तानी अथॉरिटी इस बात का विशेष ध्यान रखती है कि श्राइन के आसपास घास जमा न हो पाए और वह समय-समय पर इसकी कटाई-छटाई करते रहते हैं ताकि इसे श्रद्धालु आराम से देख पाएं।
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- ऐसा भी माना जाता है कि साल 1515 में, गुरु नानक ने करतारपुर शहर की स्थापना की।
- यहाँ, गुरु नानक ने तीन सिद्धांत दिए (Kirat Karo, Naam Japo, and Wand Chako). इन सिद्धांतों का मतलब है कि आजीविका के लिए कड़ी मेहनत करना, ईश्वर को याद रखना और अपने पुरस्कारों को दुनिया के साथ साझा करना।
- मान्यता है कि जब नानक जी ने अपनी आखिरी सांस ली तो उनका शरीर अपने आप गायब हो गया और उस जगह पर कुछ फूल रह गए।
- इन फूलों में से आधे फूल सिखों ने अपने पास रखे और उन्होंने हिंदू रीति रिवाज़ों से इन्हीं से गुरु नानक जी का अंतिम संस्कार किया और करतारपुर के गुरुद्वारा दरबार साहिब में नानक जी की समाधि बनाई।
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- वहीं, आधे फूलों को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत मुस्लिम भक्त अपने साथ ले गए और उन्होंने गुरुद्वारा दरबार साहिब के बाहर आंगन में मुस्लिम रीति रिवाज़ के मुताबिक कब्र बनाई।
- माना जाता है कि गुरु नानक जी ने इसी स्थान पर अपनी रचनाओं और उपदेशों को पन्नों पर लिखकर अगले गुरु यानी अपने शिष्य भाई लहना के हाथों सौंप दिया था। यही शिष्य बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए।
- इन्हीं पन्नों पर सभी गुरुओं की रचनाएं जुड़ती गई और दस गुरुओं के बाद इन्हीं पन्नों को गुरु ग्रन्थ साहिब (Gur Granth Sahib) नाम दिया गया, जिसे सिख धर्म का प्रमुख धर्मग्रंथ माना गया।
- श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व के मौके पर भारत-पाकिस्तान के बीच की दीवार को तोड़ दिया गया था और करतारपुर साहिब कॉरिडोर(Kartarpur Sahib corridor) श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया था।
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