Kisan Andolan 2020 – जानिए भारत में कब-कब हुए किसान आंदोलन
kisan andolan kab kab hue hai – कृषक आन्दोलन का इतिहास बहुत ही पुराना है। भारत में किसानों ने कृषि नीति में परिवर्तन करने के लिए अलग- अलग समय और अलग- अलग जगहों पर आन्दोलन किए हैं। इन आंदोलनों ने खूब सुर्खियां भी बटोरी हैं। ये आंदोलन इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। तो चलिए आपको बताते हैं भारत में कब – कब हुए किसान आंदोलन, फार्मर्स प्रोटेस्ट्स २०२० के कारण |
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किसान आंदोलन साल 2020
- मोदी सरकार ने साल 2020 में सिंतबर माह में कृषि से जुड़े तीन कानून (बिल) पास किए। इसे सरकार ने कृषि सुधार में अहम कदम बताया था, लेकिन कई राज्यों के किसान संगठनों के ये बिल पसंद नहीं आए जिसके खिलाफ अब किसानों ने ‘दिल्ली चलो’ मार्च के तहत आंदोलन शुरु कर दिया है।
- पंजाब और हरियाणा के हज़ारों किसान इस आंदोलन में शामिल हुए और दिल्ली की तरफ पैदल कूच किया। इन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने पिछले दो महीने से पंजाब में आंदोलन किया और अब वो दिल्ली आकर अपनी मांगे रख रहे हैं। फिलहाल इन तीन कृषि कानूनों में बदलाव को लेकर अहम बैठके चल रही हैं।
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पाबना आंदोलन
- पाबना आंदोलन किसानों द्वारा किया गया पहला आंदोलन माना गया है। ये बंगाल के पाबना जिले के किसानों से शुरू हुआ था। यहां के काश्तकारों को साल 1859 में एक एक्ट के द्वारा बेदखली व लगान में वृद्धि के विरुद्ध एक तय सीमा तक संरक्षण प्राप्त हुआ था, लेकिन इसके बाद भी बड़े जमींदारों ने किसानों से सीमा से अधिक लगान वसूल किया और उनको उनकी ज़मीन के अधिकार से बाहर कर दिया।
- जमींदारों की इस मनमानी के खिलाफ और उन्हें सबक सिखाने के लिए साल 1873 में पाबना के यूसुफ सराय के किसानों ने एक जुट होकर ‘कृषक संघ’ स्थापित किया। ये संगठन पैसे एकत्रित करता था और सभाएं आयोजित करता था जिससे किसान आधिकाधिक रूप से अपने अधिकारों के लिए जागरुक हो सकें।
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दक्कन का आंदोलन
- यह आंदोलन सिर्फ एक-दो स्थानों तक सीमित नहीं रहा बल्कि देश के कई विभिन्न भागों में इसका असर देखने को मिला। यह आंदोलन दक्षिण में भी देखने को मिला क्योंकि महाराष्ट्र के पूना और अहमदनगर जिलों में गुजराती और मारवाड़ी साहूकार किसानों का बहुत बुरी तरह से शोषण कर रहे थे।
- साल 1874 में सूदखोर कालूराम ने एक किसान (बाबा साहिब देशमुख) के खिलाफ अदालत से उसके घर को अपने नाम करा लिया जिसके विरोध में किसानों ने साहूकारों के विरोद्ध में ये आंदोलन शुरू कर दिया। साल 1874 में शिरूर तालुका के करडाह गांव से इस आंदोलन की शुरुआत हुई।
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उत्तर प्रदेश का किसान आंदोलन
- लगान में वृद्धि और उपज के रूप में ज़्यादा लगान वसूली के खिलाफ ये आंदोलन शुरु किया गया था। उत्तर प्रदेश के बहराइच, हरदोई और सीतापुर जिलों में किसानों से ज़्यादा लगान वसूला जा रहा था जिसके चलते किसानों ने ‘एका आंदोलन’ नाम से इस आंदोलन की शुरुआत की।
- उत्तर प्रदेश में साल 1918 में ‘किसान सभा’ का गठन किया गया। इसके बाद साल 1919 के अंतिम दिनों में किसानों का विद्रोह खुलकर सामने आया। ऐसा माना जाता है कि इस संगठन को जवाहरलाल नेहरू ने अपना सहयोग प्रदान किया था।
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मोपला आंदोलन
- केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपला किसानों ने साल 1920 में आंदोलन किया था। इस आंदोलन को अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ शुरु किया गया। इसके बाद इस आंदोलन से महात्मा गांधी, मौलाना अबुल कलाम आजाद और शौकत अली जैसे तमाम बड़े नेता जुड़े।
- कुछ समय बाद इस आन्दोलन को हिन्दू-मुस्लिमों के मध्य साम्प्रदायिक आन्दोलन का नाम दिया जाने लगा जिसके चलते इस आंदोलन को शीघ्र ही बंद कर दिया गया।
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रामोसी किसानों का विद्रोह
- रामोसी किसानों ने जमींदारों के अत्याचारों के खिलाफ यह आंदोलन शुरु किया। महाराष्ट्र में वासुदेव बलवंत फड़के के नेतृत्व में यह आंदोलन शुरु किया गया।
- यह आंदोलन साल 1879 से लेकर साल 1920-22 तक धीरे -धीरे चलता रहा।
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ताना भगत आंदोलन
- यह आन्दोलन साल 1914 में बिहार में शुरु हुआ। लगान की ऊंची दर और चौकीदारी कर के खिलाफ इस आंदोलन की शुरुआत हुई। इस आन्दोलन के संस्थापक ‘जतरा भगत’ थे। इस आंदोलन ने भी उस समय काफी तूल पकड़ा था।
तेभागा आन्दोलन
- साल 1946 का बंगाल का ये तेभागा आंदोलन सबसे सशक्त आंदोलन था, जिसमें किसानों ने लगान की दर घटाकर एक तिहाई करने की मांग की थी।
- इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य फसल का दो-तिहाई हिस्सा उत्पीड़ित बटाईदार किसानों को दिलाना था। यह आंदोलन बंगाल के 15 जिलों में खूब फैला और लगभग 50 लाख किसानों ने इसमें भाग लिया।
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चम्पारण नील आंदोलन
- चम्पारण के किसानों से ब्रिटिश बागान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके तहत सभी किसानों को ज़मीन के (3/20वें) हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था।
- जब ब्रिटिश सरकार का चंपारण में नील की खेती करने वाले किसानों पर शोषण हद से ज़्यादा बढ़ गया तो उन्होंने गांधीजी से गुहार लगाई तब नील आंदोलन की शुरुआत हुई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय नील आंदोलन बहुत फला-फूला।
खेड़ा आंदोलन
- गांधीजी ने चम्पारण के बाद साल 1918 में खेड़ा किसानों की समस्याओं को लेकर यह आन्दोलन शुरू किया।
- खेड़ा में गांधीजी ने ‘किसान सत्याग्रह’ शुरु किया और कुनबी-पाटीदार किसानों ने सरकार से लगान में राहत की मांग की, लेकिन इससे उन्हें कोई रियायत नहीं मिली।
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बारदोली आंदोलन
- साल 1928 में सूरत के बारदोली तालुका में किसानों ने मिलकर ‘लगान’ न अदायगी का एक आंदोलन चलाया था। इस आंदोलन में कुनबी पाटीदार किसानों के साथ – साथ सभी जनजाति के लोगों ने हिस्सा लिया था।
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