हज़ारोंं रानियां होने के बाद भी श्री कृष्ण क्यों कहलाए ब्रह्मचारी?
Lord krishna nithya brahmachari story – वैसे तो भगवान श्री कृष्ण की कई हज़ार रानियां थीं, लेकिन वो फिर भी ब्रह्मचारी कहलाए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर उन्हें ब्रह्मचारी क्यों कहा गया? क्या है इसके पीछे की कहानी? अगर नहीं, तो चलिए हम आपको बताते हैं।
कृष्ण भगवान क्यों कहलाए ब्रह्मचारी- – Lord krishna nithya brahmachari story
एक दिन भगवान कृष्ण गोपियों के साथ यमुना के किनारे खेल रहे थे। अचानक कृष्ण ने गोपियों से कहा कि, “गोपियों यमुना के दूसरे तट पर ऋषि दुर्वासा आए हैं और वह बहुत भूखे हैं। कृपया उनके लिए अच्छा भोजन तैयार करें और उस भोजन को ऋषि के पास ले जाएं”। ये सुनने के बाद गोपियों ने तुरंत भोजन तैयार किया और उसे लेकर वापस यमुना के तट पर आ गईं। वहां पहुंचकर उन्होंने भगवान कृष्ण से कहा, “भगवान, यमुना में बाढ़ आई है और वहां कोई नाव या नाव वाला नहीं है, हम कैसे इस शक्तिशाली नदी को पार करें”?
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यह सुनकर भगवान कृष्ण ने उत्तर दिया, प्रिय गोपियों, यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। तुम यमुना नदी को बताओ कि नित्य ब्रह्मचारी ने आपको रास्ता देने के लिए कहा है। यह सुनकर वह आपको रास्ता ज़रूर देंगी। कृष्ण की इस बात से गोपियां हैरान हो गई और उन्होंने आश्चर्यता के साथ भगवान से पूछा, “भगवान, यह नित्य ब्रह्मचारी कौन है और ये हमें क्यों नहीं दिखे”। तब प्रभु ने उत्तर दिया, “प्रिय गोपियों, नित्य ब्रह्मचारी मैं स्वयं हूं”। यह जवाब सुनकर गोपियों को बहुत आश्चर्य हुआ। वह समझ नहीं पा रही थीं कि इतनी पत्नियाँ होने के बाद भी कृष्ण कैसे खुद को नित्य ब्रह्मचारी कह सकते हैं।
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लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने प्रभु की बात मानी और यमुना के पास गईं और नदी से कहा, “हे यमुना नित्य ब्रह्मचारी ने तुम्हें हमारे लिए रास्ता देने को कहा है, ताकि हम दूसरे किनारे तक पहुंच सकें”। नदी ने तुरंत मार्ग दे दिया, जिसके बाद गोपियों ने यमुना को आसानी से पार कर लिया। दूसरी ओर पहुंचकर गोपियों ने ऋषि दुर्वासा से मुलाकात की और उन्हें भोजन परोसा। ऋषि दुर्वासा को भोजन पसंद आया और उन्होंने खुश होकर गोपियों को आशीर्वाद दिया।
अब गोपियों को वापस आना था और फिर उस उफन्ती नदी को पार करना था। इस दौरान उन्होंने ऋषि दुर्वासा से कहा कि हमें यमुना नदी को पार करना है और कृष्ण के पास जाना है। क्या आप नदी पार करने में हमारी मद्द कर सकते हैं? ऋषि दुर्वासा ने उत्तर दिया, “गोपियों, यह मेरा कर्तव्य है। आप यमुना नदी पर जाएं और उसे बताएं कि नित्य उपवासी ने आपको रास्ता देने के लिए कहा है। वह आपकी मद्द ज़रुर करेगी। यह सुनकर गोपियां फिर से हैरान हो गईं और उन्होंने सोचा कि ऋषि तो भोजन करते हैं, ऐसे में वो खुद को नित्य उपवासी क्यों कह रहे हैं।
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लेकिन इस बारे में उन्होंने उनसे कोई सवाल नहीं किया। वो चुपचाप नदी के पास गईं और उससे कहा, यमुना नदी, अब तुम्हें पार करके हमें दूसरे तट पर पहुंचना है। नित्य उपवासी ने आपसे हमें रास्ता देने के लिए कहा है। ये बात सुनकर नदी ने तुरंत मार्ग दे दिया और गोपियां नदी पार कर कृष्ण के पास पहुंच गईं। लेकिन वो बुरी तरह से उलझन में थीं। गोपियां कृष्ण भगवान के पास गईं और उनसे बोला कि हे महाराज हमें समझ नहीं आ रहा है कि आप कैसे ब्रह्माचारी हो सकते हैं और दुर्वासा कैसे नित्य उपवासी हो सकते हैं।
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कृष्ण ने जवाब दिया कि हम दोनों सच कह रहे हैं। इसका कारण यह है कि हम दोनों ही आत्मा का स्वरुप हैं और अपने आप को हमारे इस शरीर से नहीं जोड़ते। हम वास्तव में इस शरीर के भीतर आत्मा है। आत्मा अजर-अमर है। वह न तो मरती है और न ही जन्म लेती है। आत्मा शादी नहीं करती और न ही कुछ खाती है इसलिए मैं एक ब्रह्मचारी हूं और ऋषि एक उपवासी। जब कोई व्यक्ति इस बात को समझ जाए कि वो वास्तव में एक आत्मा है, तभी वो एक संतुष्ट और खुशहाल जीवन जी पाएगा। हमारे अंदर योग माया शक्ति है और इसी शक्ति के द्वारा हम कार्य करते हैं। कृष्ण ने यह भी कहा कि मेरे अंदर सब कुछ अपने भीतर समाहित कर लेने का गुण है।
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