Masik durga ashtami puja vidhi shubh muhurat – जानिए मासिक दुर्गाष्टमी का शुभ मुहूर्त, महत्व और कथा
Masik durga ashtami puja vidhi shubh muhurat – Masik durga ashtami kab hai – Masik Durga shtami 2022 Subh Muhurat and Date – हिन्दू कैलेंडर के अनुसार हर माह की शुक्ल पक्ष की अष्टम तिथि को मासिक दुर्गाष्टमी मनाई जाती है। हर माह में आने वाली मासिक दुर्गाष्टमी को बहुत विशेष माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, मासिक दुर्गाष्टमी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। जो भक्त प्रत्येक मासिक दुर्गाष्टमी को व्रत तथा पूजन आदि करता है, उसकी हर मनोकामना देवी माता पूरी करती हैं। इस दिन लोग व्रत रखते हैं मां दुर्गा की उपासना करते हैं। इस दिन मां की आरती और भजन भी किए जाते हैं। जानिए मासिक दुर्गाष्टमी का शुभ मुहूर्त, महत्व और कथा
Masik durga ashtami puja vidhi shubh muhurat
कब है मासिक दुर्गाष्टमी 2022 – Masik durga ashtami kab hai
इस बार मासिक दुर्गाष्टमी 7 जुलाई 2022 को है। मान्यताओं के अनुसार, मासिक दुर्गाष्टमी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। जो भक्त प्रत्येक मासिक दुर्गाष्टमी को व्रत तथा पूजन आदि करता है, उसकी हर मनोकामना देवी माता पूरी करती हैं।
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मासिक दुर्गाष्टमी का महत्व – Masik durga ashtami ka mahatva in hindi
यह दिन दुर्गा माता को समर्पित होता है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा- अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस दिन मां दुर्गा की विधि- विधान से पूजा- अर्चना करने से घर में सुख-समृद्धि, खुशहाली और धन आता है।
Masik durga ashtami puja vidhi shubh muhurat
मासिक दुर्गाष्टमी शुभ मुहूर्त – Masik durga ashtami shubh muhurat in hindi
- मासिक दुर्गाष्टमी जुलाई 7, 2022
- प्रारम्भ – जुलाई 06 को 19:48 बजे
- समाप्त – जुलाई 07 को 19:28 बजे
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मासिक दुर्गाष्टमी पूजा-विधि – Masik Durgashtami Puja Vidhi
- इस दिन सुबह उठकर स्नान कर लें
- फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
- घर के मंदिर में दीप जलाएं।
- मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।
- मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
- धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
- मां की आरती करें।
- मां को प्रसाद का भोग भी लगाएं।
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मासिक दुर्गाष्टमी कथा – Masik durga ashtami katha in hindi
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में असुर दंभ को महिषासुर नाम के एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी, जिसके भीतर बचपन से ही अमर होने की प्रबल इच्छा थीं। अपनी इसी इच्छा की पूर्ति के लिए उसने अमर होने का वरदान हासिल करने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या आरंभ की। महिषासुर द्वारा की गई इस कठोर तपस्या से ब्रह्मा जी प्रसन्न भी हुए और उन्होंने वैसा ही किया जैसा महिषासुर चाहता था। ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा, ऐसे में महिषासुर, जो सिर्फ अमर होना चाहता था, उसने ब्रह्मा जी से वरदान मांगते हुए खुद को अमर करने के लिए उन्हें बाध्य कर दिया, परन्तु ब्रह्मा जी ने महिषासुर को अमरता का वरदान देने की बात ये कहते हुए टाल दी कि जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है, इसलिए अमरता जैसी किसी बात का कोई अस्तित्व नहीं है। इसके बाद ब्रह्मा जी की बात सुनकर महिषासुर ने उनसे एक अन्य वरदान मांगने की इच्छा जताते हुए कहा कि ठीक है स्वामी, यदि मृत्यु होना तय है तो मुझे ऐसा वरदान दे दीजिये कि मेरी मृत्यु किसी स्त्री के हाथ से ही हो, इसके अलावा अन्य कोई दैत्य, मानव या देवता, कोई भी मेरा वध ना कर पाए।
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इस बात को सुनकर ब्रह्मा जी ने महिषासुर को दूसरा वरदान दे दिया। ब्रह्मा जी द्वारा वरदान प्राप्त करते ही महिषासुर अहंकार से अंधा हो गया और लोगों पर अत्याचार और अन्याय करने लगा। मौत के भय से मुक्त उस राक्षस ने अपनी सेना के साथ पृथ्वी लोक पर आक्रमण कर दिया, उसके आक्रमण से धरती पर चारों तरफ से त्राहिमाम-त्राहिमाम होने लगी। उसके बल के आगे समस्त जीवों और प्राणियों को हार स्वीकार करनी पड़ रही थी। पृथ्वी और पाताल को अपने अधीन करने के बाद अहंकारी महिषासुर ने इन्द्रलोक पर भी आक्रमण कर दिया, जिसमें उन्होंने इन्द्र देव को पराजित कर स्वर्ग पर भी कब्ज़ा कर लिया। महिषासुर से परेशान होकर सभी देवी-देवता त्रिदेवों महादेव, ब्रह्मा और विष्णु के पास सहायता मांगने पहुंचे। विष्णु जी द्वारा महिषासुर के अंत के लिए देवी शक्ति के निर्णाम की सलाह दी, जिसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर देवी शक्ति को सहायता के लिए पुकारा और इस पुकार को सुनकर सभी देवताओं के शरीर में से निकले तेज़ ने एक अत्यंत खूबसूरत सुंदरी का निर्माण किया। उसी तेज़ से निकली मां आदिशक्ति जिसके रूप और तेज़ से सभी देवता भी आश्चर्यचकित हो गए।
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त्रिदेवों की मद्द से निर्मित हुई वह देवी दुर्गा को हिमवान ने सवारी के लिए सिंह दिया और इसी प्रकार वहां मौजूद सभी देवताओं ने भी मां को अपने एक-एक अस्त्र-शस्त्र सौंपे। इस तरह स्वर्ग में देवी दुर्गा को महिषासुर के अंत के लिए तैयार किया गया। माना जाता है कि देवी का अत्यंत सुन्दर रूप देखकर महिषासुर उनके प्रति बहुत आकर्षित होने लगा और उसने अपने एक दूत के ज़रिए देवी के पास विवाह का प्रस्ताव पहुंचाया। अहंकारी महिषासुर की इस हरकत ने देवी भगवती को अत्यधिक क्रोधित कर दिया, जिसके बाद देवी मां ने महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा। मां दुर्गा से युद्ध की ललकार सुनकर वह ज़रा भी भयभीत नहीं हुआ और ब्रह्मा जी से मिले वरदान के अहंकार में अंधा महिषासुर उनसें युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। इस युद्ध में एक-एक करके महिषासुर की संपूर्ण सेना का मां दुर्गा ने सर्वनाश कर दिया। इस दौरान माना ये भी जाता है कि ये युद्ध पूरे नौ दिनों तक चला जिस दौरान असुरों के सम्राट महिषासुर ने विभिन्न रूप धारण करके देवी को छलने की कई बार कोशिश की, लेकिन उसकी सभी कोशिश आखिरकार नाकाम रही और देवी भगवती ने अपने चक्र से इस युद्ध में महिषासुर का सिर काटते हुए उसका वध कर दिया। अंत: इस तरह देवी भगवती के हाथों महिषासुर का अंत हो पाया। पुराणों के मुताबिक, जिस दिन मां भगवती ने स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक और पाताल लोक को महिषासुर के पापों से मुक्ति दिलाई उस दिन से ही दुर्गा अष्टमी का उत्सव प्रारम्भ हो गया।
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