Qutub minar ka itihas in hindi – जानिए कब और किसने करवाया कुतुब मीनार का निर्माण

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Qutub minar ka itihas in hindi – Qutub minar history in hindi – qutub minar delhi history in hindi – साल 1199 ई. में दिल्ली सल्तनत के संस्थापक कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने इसका निर्माण कार्य शुरू करवाया था। यह मीनार प्राकृतिक आपदाओं के कारण कई बार क्षतिग्रस्त हुई थी, लेकिन फिर बाद में इसे ठीक कराया गया था। तो चलिए आपको कुतुब मीनार का इतिहास और इससे जुड़ी सारी जानकारी देते हैं।Qutub minar ka itihas

Qutub minar ka itihas in hindi

कुतुब मीनार का इतिहास

साल 1199 ई. में दिल्ली सल्तनत के संस्थापक कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने इसका निर्माण कार्य शुरू करवाया था। यह शुरुआत में सिर्फ एक मंज़िला इमारत थी जिसका नाम कुतुब मीनार था, जिसके बाद कुतुब-उद-दीन-ऐबक के दामाद शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने 1220 ई. में इसमें तीन मंजिल जोड़कर इसका काम पूरा करवाया। यह मीनार प्राकृतिक आपदाओं के कारण कई बार क्षतिग्रस्त हुई जिसे फिरोज़ शाह तुगलक ने मरम्मत करके ठीक करवाया। बाद में मुगल शासक शेरशाह सूरी ने इसमें एक मंज़िल और जोड़कर इसे आज का रूप दिया। कुतुब मीनार 72.5 मीटर ऊंचा बताया जाता है एवं इसके अलावा इस मीनार में ऊपर की तरफ 379 सीढ़ियां भी बनाई गई हैं। दिल्ली में स्थित यह मीनार 5 मंज़िला है। इस मीनार के पास पारसी-अरेबिक और नागरी भाषाओँ में कई शिलालेख भी देखने को मिलते हैं। कुतुब मीनार देश की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। ये साउथ दिल्ली के महरौली इलाके में स्थित है। करीब 238 फीट की ऊंचाई वाला कुतुब मीनार भारत के साथ विश्व में पत्थरों से बना सबसे ऊंचा स्तंभ है। इसका व्‍यास आधार पर 14.32 मीटर और 72.5 मीटर की ऊंचाई पर शीर्ष के पास लगभग 2.75 मीटर है। इस संकुल में अन्‍य महत्‍वपूर्ण स्‍मारक हैं जैसे कि 1310 में निर्मित एक द्वार, अलाइ दरवाज़ा, कुवत उल इस्‍लाम मस्जिद, अलतमिश, अलाउद्दीन खिलजी तथा इमाम जामिन के मकबरे, अलाइ मीनार, सात मीटर, ऊंचा लोहे का स्‍तंभ आदि। कुतुब मीनार कई अन्य स्मारकों से घिरा हुआ है और इस पूरे परिसर को कुतुब मीनार परिसर कहते हैं।

अन्य स्मारकों में ये नाम शामिल हैं-

कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद- दिल्ली की प्रसिद्ध कुतुब मीनार के पास यह मस्जिद स्थित है। कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण गुलाम वंश के प्रथम शासक कुतुब-उद-दीन ऐबक ने 1206 में शुरु करवाया था। इसे बनने में चार साल का समय लगा। बाद के शासकों ने भी इसका विस्तार किया। इल्तुतमिश 1230 में और फिरोज़ शाह तुगलक ने 1351 में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में कुछ और हिस्से जोड़े। यह मस्जिद हिन्दू और इस्लामिक कला का संगम है।

लौह स्तंभ – कुतुब मीनार परिसर में ही करीब 1600 साल पहले बनाया गया लौह स्तंभ (Iron Pillar) भी स्थित है। इसकी ऊंचाई 7.21 मीटर और भार 6,000 किलो से भी अधिक है। इसे चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की याद में उनके बेटे कुमारगुप्त ने 413 ईस्वीं में बनवाया था। 98 प्रतिशत लोहे के प्रयोग के बावजूद इस स्तंभ में आज तक जंग नहीं लगा है। यह अपने आप में अजूबा है।

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अलाई दरवाज़ा – कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के दक्षिणी प्रवेश द्वार को अलाई दरवाज़ा (Alai Darwaza) कहा जाता है। इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 में करवाया था। अलाई दरवाज़े के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है। यह तुर्की शिल्प कौशल का नायाब नमूना है। इसमें गुंबद भी है, जिसका निर्माण अष्टकोणीय आधार पर किया गया है। अलाई दरवाज़े की ऊंचाई 17 मीटर और इसके गेट की चौड़ाई करीब 10 मीटर है। दरवाज़े पर खूबसूरत नक्काशी की गई है।

इल्तुतमिश का मकबरा- सन् 1235 में इल्तुतमिश ने इसे खुद बनवाया था। यह मकबरा एक गुंबद से ढका था। ऐसा माना जाता है कि यह गुंबद गिर गया था इसके बाद फिरोजशाह तुगलक (1351-88) ने दूसरा गुंबद बनवाया था। मगर, सुल्तान की किस्मत देखिए कि यह गुंबद भी नहीं टिक पाया। आज भी इस मकबरे की छत नहीं है। दिल्ली पर राज करने वाले इस सुल्तान का मकबरा बिना छत का है। बाहर से तो यह मकबरा बिल्कुल सादा है, लेकिन अंदर और गेट पर शानदार तरीके से नक्काशी की गई है। इन नक्काशियों में चक्र, घंटी, जंजीर, कमल और हीरा शामिल हैं।

अलाइ मीनार- दक्कन के अभियानों में जीत के जश्न को यादगार बनाने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 ईस्वीं में अलाई मीनार का निर्माण शुरू कराया था। इससे पहले उसने कुव्वत-उल-इस्लाम (Quwwat-Ul-Islam) मस्जिद के बाड़ों का आकार चार गुना बढ़वा दिया था। खिलजी चाहता था कि अलाई मीनार की ऊंचाई कुतुबमीनार से भी अधिक हो। अभी अलाई मीनार के पहले तल तक का निर्माण भी पूरा नहीं हुआ था कि 1316 में अलाउद्दीन खिलजी की मौत हो गई जिसके बाद से इसका निर्माण अधूरा ही है।

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 कब-कब इस मीनार को नुकसान पहुंचा

  • 14वीं और 15वीं सदी में कुतुब मीनार को बिजली गिरने और भूकंप से नुकसान पहुंचा था जिसके बाद इसकी शीर्ष दो मंज़िलों की मरम्मत फिरोज़ शाह तुगलक ने करवाई थी।
  • 1505 में सिकंदर लोदी ने बड़े पैमाने पर इसकी मरम्मत कराई थी और इसकी ऊपरी दो मंज़िलों का विस्तार किया था।
  • 1803 में एक बार फिर भूकंप के कारण कुतुब मीनार को फिर से नुकसान पहुंचा जिसके बाद 1814 में इसके प्रभावित हिस्सों को ब्रिटिश-इंडियन आर्मी के मेजर रॉबर्ट स्मिथ ने रिपेयर कराया था।

लौह स्तम्भ के शिलालेख और लौह स्तम्भ का विज्ञान

पुराने समय में विजय के प्रतीक रुप में ध्वज स्तंभ का निर्माण कराया जाता था, जिससे आने वाली पीढ़ियों को इतिहास और शौर्य से परिचित कराया जा सके। इसी कड़ी में क़ुतुब मीनार परिसर में स्थित विशाल लौह-स्तंभ इसका प्रमाण है जिसका निर्माण चौथी शताब्दी में कराया गया था। राजा चंद्रगुप्त द्वितीय जिन्होनें सन् 375 से लेकर सन् 415 तक शासन किया था, चंद्रगुप्त द्वितीय ने एक युद्ध में जीत के बाद ये स्तंभ बनवाया था जो भगवान विष्णु को समर्पित था जिसके बाद आक्रमणकारी कुतुबुद्दीन ऐबक ने हिन्दु मंदिर को नष्ट कर कुतुब मीनार का निर्माण कराया। स्तम्भ की सतह पर कई लेख और भित्तिचित्र विद्यमान हैं जो भिन्न-भिन्न तिथियों (काल) के हैं। इनमें से कुछ लेखों का अभी तक अध्ययन नहीं किया जा सका है। इस स्तम्भ पर अंकित सबसे प्राचीन लेख ‘चन्द्र’ नामक राजा के नाम से है जिसे प्रायः गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा लिखवाया गया है। यह लेख 33.5 इंच लम्बा और 10.5 इंच चौड़े क्षेत्रफल में है। यह प्राचीन लेखन अच्छी तरह से संरक्षित है किन्तु लोहे का कुछ भाग कटकर दूसरे अक्षरों से मिल गया है जिससे कुछ अक्षर गलत हो गए हैं।

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लौह-स्तंभ से जुड़े कुछ तथ्य

  • इस स्तंभ पर खुदे अभिलेख में इसे ताकतवर राजा चंद्र, जोकि भगवान विष्णु के भक्त थे, द्वारा ‘ध्वज स्तंभ’ के रूप में ‘विष्णुपद की पहाड़ी’ पर बनाए जाने का ज़िक्र है।
  • इस स्तंभ की लंबाई 8 फीट है, जिनमें से 3.8 फीट ज़मीन के अंदर है। इसका वज़न 600 किलों से ज़्यादा है।
  • लौह-स्तंभ की वास्तुकला का सबसे आकर्षक हिस्सा है इसका 1600 वर्षों से अधिक तक खुली हवा में रहने के बावजूद जंग नहीं लगना। आईआईटी कानपुर के धातुविदों ने पता लगाया है कि लोहे, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन से बनाई गई एक पतली परत “मिसवाइट” ने इस स्तम्भ की जंग से रक्षा की है। इसकी परत की मोटाई केवल 1/20 मिलीमीटर है।
  • लौह-स्तंभ में फास्फोरस तत्व मिलाया गया था लेकिन फास्फोरस की खोज तो 1669 ईस्वी में हैम्बुर्ग के व्यापारी हेनिंग ब्रांड ने की थी जबकि स्तंभ का निर्माण उससे करीब 1200 साल पहले किया गया था।
  • लौह-स्तंभ जिस प्रक्रिया से बनाया गया उसे फ़ोर्ज वेल्डिंग कहते हैं।
  • यह प्राचीन भारतीय धातुकर्मवादियों और श्रमिकों के अग्रिम कौशल को दिखाता है, जिन्होंने चारकोल को साथ मिलाकर लौह अयस्क को स्टील में बदल दिया।

कुतुब मीनार पर विवाद और दावे

इस वर्ल्ड हेरिटेज साइट को लेकर यह एकमात्र विवाद नहीं है। ये स्मारक अपने मूल और इसके वास्तविक निर्माता को लेकर कई बार विवादों में रही है।

एएसआई के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा का दावा- शर्मा ने दावा किया है कि कुतुब मीनार को राजा विक्रमादित्य ने बनवाया था न कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने जैसा कि इतिहास की किताबों में बताया गया है। धर्मवीर शर्मा ने इससे पहले बताया था कि कुतुब मीनार एक सन टावर है जिसे 5वीं शताब्दी में गुप्त साम्राज्य के विक्रमादित्य ने बनवाया था।

आर्कियोलॉजिस्ट केके मुहम्मद का दावा- आर्कियोलॉजिस्ट केके मुहम्मद ने हाल ही में कहा था कि कुतुब मीनार के पास स्थित कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद को बनाने के लिए 27 हिंदू और जैन मंदिरों को तोड़ गया था। केके मुहम्मद के मुताबिक, “मस्जिद के पूर्वी गेट पर लगे एक शिलालेख में भी इस बात का जिक्र है।’’

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