संत रविदास जयंती: कैसा था रविदास जी का संत बनने का सफर
Sant ravidas biography in hindi – संत रविदास जी भारतीय इतिहास के महान संतों में से एक थे, उन्होंने बहुत ही सरल तरीके से आम लोगों को धर्म, भक्ति और इंसानियत के बारे में बताया। तो चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी दिलचस्प बातें और कैसा था रविदास जी का संत बनने का सफर।
Sant ravidas biography in hindi
- माघ मास की पूर्णिमा को 1433 ईसवीं में वारणसी की धरती पर संत रविदास जी का जन्म हुआ।
- पेशे से रविदास जी का परिवार चप्पल बनाने का काम करता था।
- उनके पिता मरे जानवरों की खाल से चमड़ा बनाकर उनसे चप्पल बनाते थे।
- कहते हैं कि रविदास जी ने कभी भी चप्पल बनाने का काम नहीं किया।
- वह भगवान को बहुत मानते थे और बचपन से ही उनकी भक्ति में लीन रहे।
- अपनी शिक्षा उन्होंने गुरु पंडित शारदा नन्द की पाठशाला में पूरी की।
- वह अपनी शिक्षा ले रहे थे लेकिन उच्च जाति वालों ने उनका पाठशाला में आना बंद करवा दिया था।
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- पंडित शारदा नन्द ने उनका साथ नहीं छोड़ा और उन्होंने रविदास जी को अकेले में शिक्षा देना शुरू किया।
- रविदास जी की समझ बाकी बच्चों से काफी ज़्यादा थी। गुरु की सिखाई गई एक-एक बात उनके अंदर घर कर जाती थी।
- वह भगावन राम के भक्त थे और हर समय उनका नाम जपते थे।
- वक़्त के साथ-साथ रविदास जी का ज्ञान बढ़ता गया। फिर एक दिन आया जब वह एक शिष्य से गुरु बन गए।
- गुरु बनने के बाद उन्होंने लोगों को इंसानियत और धर्म का पाठ पढ़ाया।
- बचपन में उन्होंने जातिवाद की दुनिया को काफी करीब से देखा था, इसलिए वह उम्र भर इसके खिलाफ रहे और लोगों को इसे न करने की हिदायत देते रहे।
- अपनी बातों को लोगों तक पहुंचाने के लिए रविदास जी ने दोहे और भजन भी लिखे।
- उनके द्वारा की गई रचानाओं को गुरु ग्रन्थ साहिब में भी शामिल किया गया। उनकी शिक्षाओं को ‘रविदास्सिया पंथ’ भी कहते हैं।
- पांचवे सिख गुरु अर्जन देव ने उनकी शिक्षा से प्रभावित होकर इन्हें गुरु ग्रन्थ साहिब में शामिल किया।
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- रविदास जी मीरा बाई के धार्मिक गुरु भी थे और उन्हें धर्म और भक्ति के बारे में बताते थे।
- माना जाता है कि रविदास जी ने 120 से 126 साल जीने के बाद खुद ही अपना शरीर त्याग दिया। आखिरी साँसें उन्होंने अपनी जन्म भूमि वाराणसी में लीं।
- हर साल माघ महीने की पूर्णिमा पर रविदास जयंती मनाई जाती है।
- इस दिन वाराणसी और सिख समुदाय में जश्न मनाया जाता है। वाराणसी में विशेष कार्यक्रम आयोजित होते हैं, वहीं सिख समुदाय कीर्तन करता नज़र आता है।
- कुछ लोग नदी में स्नान करके रविदास जी की प्रतिमा की पूजा भी करते हैं।
- रविदास जी ने अपनी ज़िंदगी समाज सुधारने और भगवान की भक्ति में गुज़ार दी। उनकी कही बातें आज भी लोगों को इंसानियत का पाठ पढ़ाती हैं। आज भी वह लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं।
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