Vaikuntha Chaturdashi puja vidhi- जानिए वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व और पूजा का मुहूर्त
Vaikuntha Chaturdashi puja vidhi– वैकुण्ठ चतुर्दशी कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले मनाई जाती है इसलिए इसे हरिहर का मिलन और वैकुण्ड चौदस के नाम से जाना जाता है| इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शंकर की पूजा एक साथ की जाती है। आइए जानते हैं इसका महत्व और पूजा का मुहूर्त|
महत्व | mehtava – Vaikuntha Chaturdashi puja vidhi
इस दिन पूरे विधि विधान से पूजा करने से सभी को पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें वैकुण्ड की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से व्यक्ति नरक के कष्टों से मुक्त हो जाता है |
श्रद्धालु वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन व्रत भी रखते हैं। देश के विभिन्न इलाकों में इस तिथि को विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
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कहां मनाया जाता है ये पर्व?
इस दिन उज्जैन वाराणसी में बड़े धूमधाम से भगवान शिव और विष्णु जी की शोभायात्रा निकाली जाती है| ये यात्रा महाकालेश्वर मंदिर तक जाती है| इसे महाराष्ट्र में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है|
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कथा | katha
शिवपुराण के अनुसार भगवान विष्णु, शिव की पूजा करने के लिए वाराणसी गए थे। तब उन्होंने एक हज़ार कमलों के साथ भगवान शिव की पूजा करने का संकल्प लिया। कमल के फूल चढ़ाते हुए उन्होंने देखा कि हजारवां कमल गायब था। भगवान विष्णु की आँखों को कमल नयन कहा जाता है इसलिए भगवान शिव की आराधना पूरी करने के लिए अपनी उन्होंने एक आंख भेट कर दी।
भगवान विष्णु की इस भक्ति से भगवान भोलेनाथ इतना खुश हुए कि उन्होंने प्रकट होकर भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र का उपहार दे दिया और कहा “हे विष्णु! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब ‘वैकुण्ठ चतुर्दशी’ कहलाएगी। इस दिन व्रतपूर्वक पहले आपका पूजन कर जो मेरी पूजा करेगा उसे बैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी।
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मुहूर्त | muhurat
10 नवम्बर 2019, (रविवार)
वैकुण्ठ चतुर्दशी निशिताकाल – रात 11:56 से 11 नवम्बर 12:48 तक
(अवधि 52 मिनट)
वैकुण्ठ चतुर्दशी पूजा विधि | puja vidhi
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा निशिथ(यानी आधी रात ) के दौरान की जाती है|
इस दिन प्रातः काल सूर्योदय से पहला स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लें |
रात को पूजा करते वक़्त भगवान विष्णु और भोलेनाथ की मूर्ति स्थापित करें |
उसके बाद प्रतिमाओं पर तुलसी और बेल के पत्ते चढ़ाएं |
भगवान को तिलक लगाएं, धूप, दीप जलाएं और भोग चढ़ाएं।
विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें और आरती करें|
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