ये हैं शिक्षा और मनोरंजन के माध्यम से बाल श्रम के खिलाफ काम करने वाली 5 महिलाएं
World day against child labour 2019 special story – हर साल 12 जून को बाल श्रम को खत्म करने के लिए स्वयंसेवी संगठन और सरकारें विश्व बालश्रम विरोधी दिवस मनाती हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन आईएलओ की रिपोर्ट के अनुसार आज भी दुनियाभर में करीब 15.2 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करने को मजबूर हैं। जबकि जनगणना 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में एक करोड़ से ज्यादा बाल मजदूर हैं। वहीं यूनिसेफ इंडिया ने मुताबिक 4.6 मिलियन लड़कियों और 5.6 मिलियन लड़कों को अवैध रूप से रोज़गार दिया जा रहा है। इस बाल श्रम को रोकने के लिए देश के कई संगठन कार्य कर रहे हैं, तो चलिए आपको बताते हैं उन पांच वुमन्स के बारे में जो बाल श्रम को रोकने के लिए कार्य कर रही हैं।
World day against child labour 2019 special story
गीता धर्मराजन–
- गीता धर्मराजन एक लेखिका, संपादक, शिक्षिका और एक गैर-लाभकारी संगठन कथा की कार्यकारी निदेशक हैं। इस संगठन की स्थापना उन्होंने 1988 में की थी।
- इसका कार्य गरीब बच्चों की शिक्षा पर केंद्रित है। कथा दिल्ली में पंजीकृत एक गैर-लाभकारी और गैर-सरकारी संगठन एनजीओ है।
- गीता ने दिल्ली के गोविंदपुरी में सिर्फ पांच बच्चों के साथ इस कथा केंद्र की शुरुआत की थी। ये एनजीओ झुग्गियों में रहने वाले बच्चों के लिए कार्य करता है जहां अधिकांश बच्चे अपने परिवारों को चलाने के लिए बाल मजदूरी करते हैं।
- अब तक कथा ने एक हजार से अधिक झुग्गियों में 96 लाख से अधिक बच्चों को लाभान्वित किया है, और 17 भारतीय राज्यों में एक हजार से अधिक स्कूलों के साथ भागीदारी की है।
- संगठन की रिपोर्ट के मुताबकि उसके अधिकांश छात्र कॉलेज से स्नातक और आईबीएम जैसी कंपनियों में काम कर रहे हैं और इसका पूरा श्रय गीता धर्मराजन को जाता है।
Must read- जानिए भारत में इतिहास रचने वाली आदर्श महिलाओं के बारे में
शाहीन मिस्त्री
- शाहीन मिस्त्री एक भारतीय सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक हैं। वह मुंबई और पुणे में एक भारतीय गैर-लाभकारी शैक्षिक पहल आकांक्षा फाउंडेशन की संस्थापक हैं और 2008 से टीच फ़ॉर इंडिया की सीईओ भी हैं।
- 1991 में, शाहीन मिस्त्री ने एक गैर-लाभकारी संगठन आकांक्षा फाउंडेशन की स्थापना की, जो कम आय वाले समुदायों के बच्चों को शिक्षित करता है जिससे वो अपना जीवन सफल बना सके।
- 2007 तक, फाउंडेशन अपने स्कूल और केंद्रों के माध्यम से संचालित होता था, लेकिन आज इसने मुंबई और पुणे में अपने स्वयं के 21 स्कूल स्थापित किए हैं।
- स्कूलों में लगभग 500 शिक्षक हैं और सभी में 8,000 से अधिक छात्र हैं। वहीं वर्तमान में टीच फ़ॉर इंडिया के पास सात शहरों में 1,000 से अधिक टीचर हैं और लगभग 2,500 छात्र हैं।
Must read; Sindhutai Sapkal also known as “Mother of Orphans”
फरीदा लांबे
- समाजिक कार्यकर्ता फरीदा लांबे ने वर्ष 1995 में भारत में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में काम करने वाले एक ‘शिक्षण संगठन प्रथम’ की सह-स्थापना की।
- शुरुआत में इसे मुंबई की झुग्गी बस्तियों में बच्चों के लिए स्थापित किया गया था लेकिन अब प्रथम पिछले 23 वर्षों में बहुत बढ़ गया है।
- प्रथम सरकार, स्थानीय समुदायों, शिक्षकों और स्वयंसेवकों के साथ काम करता है। इसका उद्देश्य गरीब बच्चों को शिक्षित करना है जिससे वो बाल मजदूरी न करें।
- प्रथम इसके साथ- साथ ‘दूसरा मौका‘ कार्यक्रम भी चलाता है जिसमे वो ऐसी लड़कियों और महिलाओं की मदद करता है जिन्हें पैसों की तंगी की वजह से स्कूल छोड़ना पड़ा। उन लड़कियों को ये फिर से पढ़ने का मौका देता है।
- वर्ष 2017-18 में प्रथम कुल 23 भारतीय राज्यों में पहुँच गया। देश भर के 80 लाख से अधिक बच्चे और युवा इससे जुड़ चुके हैं।
जेरू बिलिमोरिया –
- जेरू बिलिमोरिया एक सामाजिक उद्यमी और कई अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों के संस्थापक हैं। उनके काम को कई पुस्तकों में चित्रित किया गया है।
- ये चाइल्डलाइन इंडिया फाउंडेशन और चाइल्ड हेल्पलाइन इंटरनेशनल जैसे समाजिक संस्था चलाती हैं। यह संस्था 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की सुरक्षा के लिए काम करता है और संकट में बच्चों के लिए 24/7 टेलीफोन हेल्पलाइन संचालित करता है।
- यह अधिक कमजोर वर्गों के बच्चों पर ध्यान केंद्रित करता है, जैसे शारीरिक, यौन और भावनात्मक शोषण का शिकार, यौनकर्मियों के बच्चे, विकलांग बच्चे और संघर्ष और आपदा से प्रभावित बच्चे।
Must read – Aruna Roy : A Political and Social activist
श्वेता चारी
- श्वेता ने 2004 में अपनी नौकरी छोड़कर ‘टॉयबैंक‘ नाम की संस्था खोली जिसे स्वयंसेवकों के साथ मिलकर चलाया जा रहा है।
- मुंबई टॉयबैंक एक गैर-सरकारी संगठन है ये गरीब बच्चो को उनके खेलने का अधिकार देता है।
- यह उन बच्चों को खेल के माध्यम से सहानुभूति, शिक्षा और शक्ति प्रदान करता है जो सामाजिक तौर पर वंचित हैं।
- ये संस्था घर-घर जाकर खिलौने इकट्ठे करती है और दिल्ली, पुणे और बेंगलुरु सहित देश के विभिन्न शहरों में स्थापित 250 से अधिक ‘प्ले सेंटर‘ के माध्यम से बच्चों को खिलौने वितरित करती है।
- अब तक टॉयबैंक ने देश भर के कई स्कूलों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी की है। वर्ष 2017-18 में संगठन खिलौने और मनोरंजक कार्यक्रम के साथ महाराष्ट्र में 43,000 से अधिक बच्चों से जुड़ चुका है।
Must read – Sambhaji Bhide: The inspirational 85 year old who has changed the face of rural Maharashtra
To read more stories like World day against child labour 2019 special story ,do follow us on Facebook, Twitter, and Instagram